प्रगतिशील सोच में ही महिलाओं की इज्जत


पंजाब के तरनतारन में 29 जुलाई को तिहरा हत्याकांड हुआ। ये हत्याएं एक लड़का-लड़की के अंतरजातीय विवाह करने के प्रतिकर्म के रूप में की गई। हालांकि दोनों ही परिवार उस सिख संप्रदाय के अनुयायी हैं, जिसमें जाति-पाति के बीच भेद न करने की बात कही जाती है। पिछले तीन सालों में देशभर में 'इज्जत के नाम पर लगभग 300 हत्याएं हुई हैं। हरियाणा में जाति या समाज आधारित 'देसी-अदालतें' लगाकर उन जोड़ों को सजा सुनाई जाती रही है, जिन्होंने स्थापित सामाजिक जाति-बंधन तोड़कर शादी रचाई हो। खाप पंचायतों ने कालांतर में न केवल इस तरह की शादियों को निरस्त किया है बल्कि याज दफा जिस लड़की से बलात्कार किया गया हो, उसकी शादी दोषी के साथ जबरदस्ती तक करवा दी है। 'इज्जत की खातिर' की गई हत्याओं को समाज का अनुमोदन दिलवाकर रफादफा करवाया है। इस तरह के फरमानों के कारण ही सर्वोच्च न्यायलय ने उन पर कड़ा रुख अख्तियार किया है।यह सोपान कैसे और कहां से आया है? वह कौन-सा तक है, जिसके तहत भारतीय परिवार की इज्जत महिलाओं पर टिका दी गईहै? इसके विपरीत परिवार के मदों का आचरण कैसा भी हो लेकिन उसकी महिलाओं की इज्जत अछूती रहती है ! कई सामाजिक वर्ग 'गलती' करने वाली महिला की हत्या को परिवार की 'इज्जत बचाने' के नाम पर सही ठहराते हैं। इस तरह की गई हत्याओं का नामकरण 'इज्जत की खातिर' हत्याएं (ऑनर किलिंग) कर दिया। छुटपन से लड़कियों पर कड़ी आचरण-संहिता लागू कर दी जाती है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह आज्ञाकारी बने, बंधनों में रहे, सहनशील बने और कौमार्य को भंग न होने दे। घर की बड़ी बूढ़ी औरतें अक्सर इस संहिता का पालन करके-करवाकर अपने लिए स्वीकार्यता और वरिष्ठता अर्जित करती राजनीति हैं।ऐसे परिवारों में अगर कोई महिला सामाजिक प्रतिबंध लगाकर महिलाओं के शिक्षक (लड़की) की किसी मर्द के साथ मित्रता हो आचरण, आजादी, निजी यौन-पसंद पर जाती है, घर वालों द्वारा तय शादी करने से नियंत्रण व अंकुश बनाने को जायज और इनकार करती है, पति से तलाक लेना स्वीकार्य ठहराया जाता है। ऐसे समाज में चाहती है, पर-पुरुषों से दोस्ती बनाती है, जहां नियम मदोद्वारा बनाए जा 'माकूल' कपड़े नहीं पहनती, बिना अनुमति गहरी जड़ पकड़ चुके उस पितृसत्तात्मक तंत्र घर से निकलती है, किसी के साथ डेटिंग का प्रतिबिंब है, जिसमें महिलाओं को बंधन करती है, घर के पुरुषों के अलावा किसी में रखना मुख्य ध्येय होता है। तथ्य यह है पंचायतों अन्य मदं से बात करती है, बलात्कार की कि पितृ सत्तात्मक तंत्र में मर्द महिलाओं की शिकार है, यहां तक कि 'भड़काऊ' परिधान लगाम अपने हाथ में रखना चाहते हैं और पहनने के कारण अपनी मौत का सामान इसे चालाकी से 'इज्जत बनाए रखना' का 'इकट्ठा कर लेती है। उपरोक्त वर्जनाओं का नाम देते हैं। उल्लंघन करने का परिणाम है समाज में मर्द चाहते हैं कि लड़की किसी भी सूरत कानाफूसी और किस्सागोई का बायस में जाति या संप्रदाय से बाहर जाकर वाली बनना, जो आगे सीधा जुड़ा है उस घर के जीवनसाथी चुनने से परहेज करे। पिछले मदों की 'इज्जत उछलने' से, इन पुरुषों के कुछ सालों से भारतीय संस्कृति के स्वयंभू लिए 'इज्जत' वह है, जिसे वे अपने परिवार रक्षकों ने खुद से बीड़ा उठा रखा है कि जहां की महिलाओं एवं छोटे पुरुष सदस्यों पर कहीं 'पवित्र भारतीय रिवायतों' का उल्लंघन नियंत्रण प्रभुत्व थोपकर अर्जित करते हैं। करते जोड़ों को पाएं, वहीं उनको जलील संस्कृति अथवा रिवायत की आड़ में करें या हमला करें। हिंदू समाज में असुरक्षा और गुस्से की भावना पैदा करने के मंतव्य हुआ। क्या यह हैरानी की बात नहीं है कि से 'लव-जिहाद' नामक मिथक मिथक को इन्हीं राज्यों में कई ऐसे हैं जो 'इज्जत की गढ़ा गया है।अनेक अल्पसंख्यक जैसे कि खातिर' की गई हत्याओं के लिए कुख्यात ईसाई, कुर्गी और उत्तर-पूर्वी राज्यों का हैं? राष्ट्रीय अपराध आंकड़ा ब्यूरो के समाज इस देश का उतना ही हिस्सा है, अनुसार वर्ष 2014-15 की अवधि में भारत जितने हिंदू हैं। उनके यहां महिलाओं द्वारा में 'इज्जत की खातिर' हत्याओं में हैरानकुन अपनी पंसद के विपरीत लिंगी चुनने या फिर 789 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी विद्रूपता उनके साथ मित्रता रखने संबंधी सामाजिक- देखिए कि देश में होने वाले कुल अपराधों सांस्कृतिक नियम हमारे मुकाबले कहीं में बलात्कार चौथे स्थान पर है। वह भी उस ज्यादा उदार एवं खुलापन लिए हैं। केरल देश में जहां के समाज पर अपनी औरतों की की नायर जाति में काफी ज्यादा यौन इज्जत को बनाए रखने का चिंतातुर जनून आजादी है। सवार है! भारत में औसतन रोजाना 106 महिलाओं पर नियंत्रणवादी और बलात्कार होते हैं और शिकार बनी 10 दमनकारी रवैये का सबसे ज्यादा महिलाओं में 4 अवयस्क हैं। इन अपराधों नुकसानदायक पहलू वह है, जिसे ग्रामीण में कुकर्मी को सजा होने की दर शर्मनाक अंचल और छोटे शहरों के विद्यालयों के रूप से महज 25.5 फीसदी है। औरतों से शिक्षक फैलाते हैं। को-एजुकेशन शिक्षण छेड़छाड़ इतनी ज्यादा प्रचलित है कि हाल संस्थानों में भी देखने में आता है कि लड़के ही में हरियाणा के एक स्कूल की छात्राओं और लड़कियों को अलग-अलग बैठाया को अपनी सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय जाता है। बठिंडा जिले के एक ग्रामीण से गुहार लगानी पड़ी हैप्राकृतिक सहजलड़के-लड़की में प्यार होने के मामले ने अंदर रखने हेतु अंकुश और नियंत्रण रखा इतना तूल पकड़ा कि दोनों गांवों की जा सकता है लेकिन बलपूर्वक दमन और पंचायतों के बीच लड़ाई की नौबत आ गई इनसानी इच्छाओं का अपराधीकरण विकृत थी। इस किस्म का अस्वस्थ, पितृ-तंत्रवादी एवं हिंसक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देते हैंमाहौल समाज में औरतों को लेकर बनी और सामाजिक बुराई का रूप धर लेते हैं। 'इज्जत का सवाल' पैदा करने के अतिरिक्त आइए हम सब इस तथ्य के प्रति जागृत हो उनके खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने, कि संस्कृति कभी भी जड़ नहीं होती, यह गालियां बकने यहां तक कि मार डालने एक गतिशील प्रक्रिया है जो बृहद वैश्विक, वाली विकृत मानसिकता भर देता सामाजिक और तकनीकी परिदृश्य के साथ है। किशोरवय शिक्षा कार्यक्रम' एक ऐसा कदमताल करते हुए लगातार अपने में यौन शिक्षा पाठयक्रम था, जिसे मानव परिवर्तन करती जाती है। पाखंड और दोहरे संसाधन विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय एड्स मापदंड छद्म संस्कृति की आड़ में नहीं चल नियंत्रण संस्थान ने मिलकर विकसित किया पाएंगे। भारतीय समाज को पितृ सत्तात्मक था लेकिन गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, रवैया त्यागकर ईमानदार, उभयनिष्ठ और कनाटक और राजस्थान में इसका विरोध उदार होना होगा ताकि एक स्वस्थ, सुरक्षित