संसद ने कामकाज का नया रिकॉर्ड बना कर जन-विश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि की


17वीं लोकसभा के गठन के बाद लोकसभा और राज्यसभा में जो कार्य हुए, वे देश के नागरिकों में विश्वास ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की भावना को मजबूत करता है। वर्षों से लंबित बिलों का पारित होना स्वयं यह दर्शाता है कि देश का मनमस्तिष्क बदल रहा है। गत दो दशकों से देश के दोनों सदनों और राज्य के विधानसभाओं में सत्रों की अवधि को लेकर सदैव चर्चा रही। एक चलन-सा बन गया था कि सत्र ही कम दिनों का बुलाया जाए। जिससे हो हल्ला न हो और हो भी तो कम समय में विधायिका या संसदीय कार्य तत्काल पुरा कर लिया जाए। आम नागरिकों में भी इस बात की चर्चा चल पड़ी थी। अनेक आलेख भी समाचार पत्रों में आते रहे। लोकतंत्र के इन मंदिरों में लोकतंत्र तभी जीवित रहेगा, जब तक यहां पक्ष-विपक्ष दोनों के बीच देश और राज्यों के प्रमुख विषयों पर खले मन से राष्ट्र या राज्य हित में चर्चा हो। इस श्रृंखला में आई टन से देश चिंतित हो रहा था। उम्मीदों पर ही आकाश टिका हुआ है पिछले यानी 17वीं लोकसभा के गठन के बाद लोकसभा और राज्यसभा में जो कार्य हुए, वे देश के नागरिकों में विश्वास ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की भावना को मजबूत करता है। वर्षों से लबित बिलों का पारित होना स्वयं यह दर्शाता है कि देश का मन-मस्तिष्क बदल रहा है। लोगों ने अब अपने अलावा देश के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि 17वीं लोकसभा और राज्यसभा के (37) सैंतीस दिनों की कुल बैठकों में 32 बिल लोकसभा और 37 बिल राज्य सभा में चर्चा के बाद पारित हुए। 17 जुन 2019 से 6 अगस्त 2019 तक चले इस सत्र में कुल 37 बैठकें हुई और करीब 280 घंटे तक कार्यवाही चली। कुल 37 बैठकों में 36 बिल पारित हुए तो शून्यकाल के दौरान पहली बार 1000 से अधिक मुद्दे उठाये गए। 1952 के बाद यह पहला मौका है जब 37 बैठकों के बावजूद एक दिन भी कार्यवाही बाधित नहीं रही। 1952 के बाद पहली बार है जब सदन का व्यवधान शून्य रहा और इसमें सदन के सदस्यों की अहम भूमिका रही है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर 13.47 घंटे तक चर्चा हुई। 183 तारांकित प्रश्न पूछे गए, 1086 लोकहित से जुड़े मुद्दे शून्यकाल के दौरान उठाये गए। इसमें भी सबसे अच्छी बात यह रही कि ज्यादा से ज्यादा नए सदस्यों को बोलने का मौका दिया गया। इस सत्र में शून्यकाल में 265 नए सदस्यों में से 229 सदस्यों को अपनी बात कहने का मौका मिला। 46 नई महिला सांसदों में 42 को शुन्यकाल के दौरान बोलने का मौका मिला लोकसभा में लगभग 137 प्रतिशत काम हुआ, जबकि राज्यसभा में 103 प्रतिशत काम हुआ। राज्यसभा का 249था सत्र 27 बैठकों में 32 विधेयक पारित करा कर सम्पन्न हुआ। उच्च सदन में लाने का निर्णय प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने रूप से राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक यह 17 साल में सबसे सफल सत्र रहा। देश लिया। राज्यसभा और लोकसभा के सत्र को 2019 चिकित्सा क्षेत्र में एक क्रांतिकारी आश्चर्यचकित था, जब राज्यसभा में तीन- बढ़ाने की बात हो गई तो देशवासियों और सुधार है जो चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा तलाक बिल पारित हुआ। लोगों को विश्वास मीडिया को लगा कि कोई महत्वपूर्ण बिल यवसाय और चिकित्सा संस्थानों से नहीं हो रहा था। लोकसभा में तो भाजपा आएगा। लेकिन देश में किसी ने नहीं सोचा संबंधित सभी पहलुओं के विकास और और एनडीए की संख्या दो-तिहाई से था कि धारा 370 और 35 को समाप्त करने विनियमन के लिए एक राष्ट्रीय चिकित्सा अधिक है। वहां पर बिलों का पास होना वाला विधेयक लाया जाएगा। राज्य सभा का आयोग के गठन तथा आयोग को सलाह देने लगभग तय ही होता है। पर राज्य सभा जहां वह दिन 5 अगस्त था। जैसे ही भारत के और सिफारिश करने के लिए एक चिकित्सा भाजपा या एनडीए के पास अभी बहुमत नहीं गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर में 10 सलाहकार परिषद के गठन का प्रावधान है, से भी तीन तलाक बिल के पास हो जाने प्रतिशत आरक्षण और जम्मू-कश्मीर राज्य करता है।देश में सामाजिक और लैंगिक से, सभी हैरत में रह गए। स्वयं कांग्रेसी पुनर्गठन का बिल प्रस्तुत किया, सत्ता पक्ष न्याय प्रणाली को और मजबूती प्रदान करने चकर में पड़ गए। वे यह मानकर चल रहे की बांछे खिल गई। मेजों की थपथपाहट से के लिए भी कुछ विधेयकों को इस सत्र में थे कि लोक सभा में इनका संख्याबल है पर निकले स्वर में भारत माता की जय%% पारित किया गया। यौन अपराधों से बच्चों राज्य सभा में तो बिल पास नहीं होने देंगे। का स्वर निकल रहा था। वहीं विपक्ष की का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के ओर सन्नाटा खिंच गया था। सदन हत-प्रभ पोर्नोग्राफी में बच्चे के चित्रण को अपराध राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा भारत के गृहमंत्री था। कांग्रेसी और टीएमसी सहित डीएमके घोषित करने के अलावा बच्चों के साथ होने अमित शाह की कुशल रणनीति से राज्य और सपा ने विरोध के स्वर उठाये, पर वाले यौन अपराधों के लिए ज्यादा कठोर सभा में भी विपक्ष 84 और सत्ता पक्ष 100 लोकतंत्र के मंदिर में भारत माता की स्वर सजा का प्रावधान करता है, जो बीस साल मत प्राप्त कर तीन तलाक विधेयक पर मंजूरी कहानियां जिस तरह से अमित शाह ने रखीं, तक या कुछ मामलों में शेष जीवन के लिए हासिल करने में सफल रहा तो सभी को यह साहसिक और ऐतिहासिक था। कारावास तक बढ़ायी जा सकती है राष्ट्रीय लगा कि अब राज्य सभा में कांग्रेस और राज्यसभा में सभी ने बहस में भाग लिया। सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने और राष्ट्रीय विपक्ष में कोई एकता नहीं है। तीन तलाक सभी के द्वारा उठाये गए एक-एक प्रश्नों का सुरक्षा पहलुओं और मानवाधिकारों के बीच पर अच्छी बहस हुई। चर्चा के दौरान कुछ उत्तर अमित शाह ने दिया। इसी बीच संतुलन कायम करने के लिए इस सत्र के दलों ने बहिष्कार किया पर अधिकतर दलों प्रधानमंत्री आ गए। विपक्षियों ने मत दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (संशोधन) ने मतदान किया राज्यसभा में कांग्रेस सहित विभाजन मांगा। मत विभाजन में कांग्रेस विधेयक 2019, गैरकानूनी गतिविधियां विपक्ष की पोल तब खुली जब सूचना के सहित विपक्षियों को मात्र 61 और भाजपा (रोकथाम) संशोधन विधेयक 2019 और अधिकार का बिल आया। इस बिल पर को 125 मत मिले। सदन के इस फैसले के मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक कांग्रेस ने विरोध जताया। उनका साथ कुछ साथ ही पूरा देश झूम उठा। सदन विपक्षी दलों ने भी दिया। पर जब मत भारत माता जिंदाबाद के नारे लगने लगे। वेतन अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन विभाजन हुआ तो एनडीए को 117 और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृहमंत्री अमित शाह अधिनियम 1948, बोनस भुगतान कांग्रेस सहित कुछ विपक्षी दलों को 75 मत की पीठ ठोंकी। सदन में इतिहास रचते इस अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक मिले। इस बिल के बाद भाजपा का राज्य घटना को पूरे भारत ने देखा स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिनियम 1976 को आपस में मिलाकर सभा में हौसला बुलंद हो गया। भाजपा को सुधार से संबंधित चार विधेयक- राष्ट्रीय वेतन संहिता विधेयक, 2019 को कानून का यह विश्वास हो गया कि यदि अब कोई भी चिकित्सा आयोग विधेयक 2019, रूप दिया गया है। उपभोक्ता संरक्षण कठिन से कठिन बिल यदि देश हित में लाया होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संशोधन) विधेयक 2019, पहले के कानून को रद्द जाएगा तो भाजपा मत विभाजन में जीत विधेयक 2019, भारतीय चिकित्सा परिषद करके और उपभोक्ता अधिकारों के सकती है। यही कारण था कि जम्मू-कश्मीर (संशोधन) विधेयक 2019 तथा दंत प्रोत्साहन, संरक्षण और उन्हें लागू करने के राज्य पुनर्गठन विधेयक को लेकर लाया चिकित्सक (संशोधन) विधेयक 2019, लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण गया। संकल्प सबसे पहले राज्य सभा में दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिए गए। विशेष की स्थापना का प्रावधान करके उपभोक्ता संगीतकार का नाम शामिल संरक्षण तंत्र में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का प्रावधान करता ।इसी तरह मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 का उद्देश्य सड़क सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को सुलझाना, नागरिकों को सहूलियत देना, सार्वजनिक परिवहन, स्वचालन एवं कंप्यूटरीकरण को सुदृढ़ करना, अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर जुर्माना राशि बढ़ाना और सड़क हादसों में घायलों की मदद करने वालों की सुरक्षा के लिए प्रावधान करना शामिल हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में संसदीय कार्य मंत्रालय के मंत्रियों द्वारा दोनों ही सदनों में उत्कृष्ट सामंजस्य स्थापित करने की बदौलत ही उपयंक त उल्लेखनीय नतीजे सामने आ पाए है। विपक्षी दलों के सदस्यों के सुझावों पर राज्यसभा में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2019 और मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2019 पर विचार- विमर्श के दौरान संबंधित मंत्रालयों ने सुझावों को स्वीकार किया और उनसे संबंधित आधिकारिक संशोधन पेश किए गए, जो सदन के पटल पर राजनीतिक दलों के बीच समन्वय एवं सहयोग के सटीक उदाहरण हैं कांग्रेस द्वारा तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन, दोनों विधेयकों का विरोध करना उनकी नासमझी नहीं बल्कि उनके विवेक पर सवाल खड़ा करता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी में लिखा है-विचारों का विरोध सदैव जीवित रहना चाहिये। विचार की प्रतिबद्धता उतनी ही होनी चाहिए। कांग्रेस में उंगली पर गिनने वाले बचे हैं, जो प्रतिबद्धता से जुड़े हों। कांग्रेस परिवारधारा से इतनी जुड़ गई कि उसकी विचारधारा खो सी गई है पिछले पांच-छह वर्षों के दौरान राज्यसभादृलोकसभा चैनल को देखने के प्रति देश की जनता की रुचि बढ़ी है। इन दोनों चैनलों के माध्यम से देश के नेताओं, सांसदों का आकलन शुरू हुआ है। इसीलिए अब हर पार्टी के सांसदों, नेताओं को दोनों सदनों में सावधान रहना पड़ेगा 170 साल देश की जनतांत्रिक राजनीति में युगांतकारी परिवर्तन हुए हैं। उसका ताजा उदाहरण 2019 का आम चुनाव रहा है। इस लोकसभा चुनाव में जनता स्वयं आगे आकर चुनाव लड़ी थी। जनता समझती है सुरक्षित है, किसे चुनना चाहिए। जनतंत्र की परीक्षा में जनता अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण हुई। अब देश के जनप्रतिनिधियों को भी अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण होते रहना चाहिए। अव देश में जहाँ दोनों सदनों पर पुन- देश का अटूट विश्वास जागेगा, वहीं राज्यों के विधानसभाओं को काम चलाऊ सत्रों की बजाये उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिक दिनों का सत्र चलाना ही होगा। लोकतंत्र संवाद और बहस से मजबूत होता है न कि इससे भागने से।