संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पद्धति बदलनी होगी। यह उत्पादकता में कमी की स्थिति को भूसंबंधी अंतर-सरकारी समिति तभी संभव है जब हम यह क्षरण कहा जाता है जिन इलाकों में यह भू(आईपीसीसी) ने बृहस्पतिवार को मानने को तैयार हों कि जल के खात्मे के चलते हो रहा है, वहां इसे जलवायु परिवर्तन और भूमि संबंधी अपनी जिसे हम विकास समझ मरुस्थलीकरण का नाम दिया गया है। रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया को घेर रही इस रहे हैं वह एक मायने में लेकिन शहरों का दायरा बढ़ने के साथ स्थायी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए विनाश है। हम जहां तक सड़क, पुल, कारखानों और रेलवे लाइनों जीवाश्म इंधन से होने वाले कार्बन पहुंच चुके हैं वहां से के निर्माण से खेतिहर जमीन का खात्मा उत्सर्जन को रोकना ही काफी नहीं है। एकाएक पीछे लौटना और बची जमीन की उर्वरा शक्ति कम होना इसके लिए खेती में बदलाव करने होंगे, मुमकिन नहीं, पर विकास भू-क्षरण का दूसरा रूप है, जिस पर अभी शाकाहार को बढ़ावा देना होगा और जमीन की दिशा बदली जा बात ही नहीं होती। वन क्षेत्र का लगातार का इस्तेमाल सोच-समझकर करना होगा। सकती है, उसकी रफ्तार खत्म होना भी इसकी एक बड़ी वजह है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 23 फीसदी घटाई जा सकती है। अभी आईपीसीसी रिपोर्ट में आए सुझावों कृषियोग्य भूमि का क्षरण हो चुका है, आईपीसीसी रिपोर्ट जो कह पर अमल शुरू किया जा सके तो थोड़ी जबकि भारत में यह हादसा 30 फीसदी तरह प्रभावित होगी।अनुमान है कि 2050 रही है. पहले वही बात दूसरी रिपोटों ने भी राहत मिल सकती है। इसके मताबिक बिना भूमि के साथ हुआ है। जमीनों का तक खाद्य वस्तुओं की कीमतें 23 प्रतिशत कही है। भूमि की बर्बादी को लेकर जुताई वाली खेती और खाद के सीमित, रेगिस्तानीकरण जारी है। तकनीकी तौर पर तक बढ़ जाएंगी। 25-30 प्रतिशत खाद्य भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन लक्षित उपयोग से 2050 तक कार्बन मरुस्थल उस इलाके को कहते हैं, जहां पेड़ पदार्थ अभी यूं ही बर्बाद हो जाते हैं। इस (इसरो) की एक रिपोर्ट में भी भारत के उत्सर्जन में 18 फीसदी की कमी की जा नहीं सिर्फ झाड़ियां उगती हैं। जलवायु बबांदी को कम कर करने से ग्रीनहाउस गैस कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30 फीसदी सकती है और अगर हम खानपान में सागपरिवर्तन के कारण पैदावार में गिरावट आ उत्सर्जन कम होगा और खाद्य सुरक्षा में हिस्सा मरुस्थल बन जाने की बात दो साल सब्जियां बढ़ाएं और रेड मीट का इस्तेमाल रही है और खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व सुधार होगा। आईपीसीसी की रिपोर्ट का पहले आ चुकी है। प्राकृतिक कारणों या घटा दें तो उत्सर्जन में एक तिहाई कमी कम होते जा रहे हैं। इससे खाद्य सुरक्षा बुरी साफ इशारा यह है कि हमें अपनी जीवन- मानवीय गतिविधियों के चलते जैविक मुमकिन है।
यह कैसा विकास?